शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

जाने क्यों

 मन नही होता

मिलने का अब

सुख और आराम से

क्या हुआ ,जो आज खड़े हैं

द्वार पर ही

 

पहले जब मैं उनकी राह देखती थी

किसी प्रेयसी की तरह

वे कतराकर निकलजाते थे

शायद देखकर कि

उनके बैठने के लिये

घर में एक कुर्सी तक नही है ।

आते भी तो दिखाते थे भाव

बेटी को देखने आए

नकचढे मेहमानों की तरह ।

 

नही बन पाई उनसे तब

अब वे मुझसे मिलना चाहते हैं

माँगते हैं समय ।

मैं अवहेलना नही करती

घर आए मेहमान की

लेकिन नही मिल पाती

उस तरह जिस तरह मिलता है

कोई बचपन के सहपाठी से

बहुत दिनों बाद ।

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3 टिप्‍पणियां:

  1. सुख और आराम से बड़ा कुछ जब मिल जाता है मन को फिर क्यों उनकी जी हुज़ूरी करे कोई, सुख और आराम जब मिलने का समय माँगते हैं तब समझ जाना चाहिए कि उनकी ग़ुलामी करने के दिन पूरे हुए

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  2. बहुत आभार अनीता जी . आप मेरी पोस्ट अवश्य देखती हैं यह मेरे लिये बड़ी बात है .अभी देखा कि बिना देखे ही कविता इस ब्लॉग पर डालदी है . यह कहानी का है ..

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  3. जीवन की सच्चाई पर गंभीर चिंतनपूर्ण रचना।

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