शुक्रवार, 28 मार्च 2014

वो ढाई घण्टे

यह कहानी सन् 1985 में लिखी गई थी । कहानी के पात्र व घटनाएं  भले ही काल्पनिक हैं पर यथार्थ को प्रस्तुत करती यह कहानी आपको कहानी कम रिपोर्ताज अधिक प्रतीत होगी । साथ ही यह कहानी हमारी शिक्षा-व्यवस्था के स्वरूप की जड़ों का भी संकेत करती है ।
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मार्च-अप्रैल का महीना फसल की कटाई ,मडाई का होता है । कटाई चाहे गेहूँ-चना की हो या फिर पाठ्यक्रम की । देखा जाए तो स्कूली शिक्षा का पाठ्यक्रम ही एकमात्र ऐसी फसल है जिसमें बुवाई ,निराई-गुडाई, सिंचाई और देखभाल की बजाय, ध्यान फसल की कटाई पर ही ज्यादा रहता है ।कटाई के लिये पूरा विभाग हँसिया पैने कर तैयार होजाता है । फसल के अच्छे उत्पादन का निर्धारण भी कटाई-कौशल पर ही निर्भर रहता है . 
उधर तो खेतों में गेहूँ-चना मसूर आदि खलिहानों में जमा होगया और इधर स्कूलों में जुलाई में बोई गई पाठ्यक्रम की फसल को काटने परीक्षा के हँसिया तैयार थे । हँसिया ऐसे-वैसे नही संभागीय बोर्ड के धारदार हँसिया थे । यानी आठवीं बोर्ड की परीक्षा थी।
पहला पेपर हिन्दी का था । 
परीक्षा-केन्द्र पर काफी चहल-पहल और गर्मजोशी का वातावरण था । केन्द्राध्यक्ष मि. गौतम की व्यवस्था एकदम दुरुस्त थी । स्कूल-प्रांगण में सामने ही एक बडा ब्लैकबोर्ड रखा था जिस पर परीक्षा सम्बन्धी निर्देश थे--
"परीक्षा-केन्द्र पर किसी बाहरी व्यक्ति का आना निषिद्ध है ।"
"परीक्षा कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं गोपनीय है । इसमें अनुशासन व सख्ती बनाए रखें ।"
"किसी भी छात्र-छात्रा पर अनुचित सामग्री मिली तो उसे परीक्षा से वंचित करते हुए कडी कार्यवाही की जावेगी ।"
"अनुचित सामग्री !!"---पर्यवेक्षक रामखिलाडी शर्मा मुस्कराए---"बोर्ड की परीक्षा है और हर कमरे में 'बोर्ड' है ही । सामग्री रखकर क्या कद्दू लेंगे ।"
रामखिलाडी शर्मा दूसरे शिक्षकों की तरह ही बडे 'परिश्रमी' पर्यवेक्षक हैं । हर परीक्षा केन्द्र पर इनकी बडी माँग रहती है । साथ में खूबचन्द गुप्ता है । संकुल के किसी स्कूल से है । झकाझक सफेद धोती-कुरता पहनते है । वे भी 'मेहनती' है लेकिन साथ ही बच्चों को पढाते भी हैं । दोनों एक ही कमरे में थे । उत्तरपुस्तिकाएं बाँटी जाचुकीं थीं । पर्यवेक्षक इधर से उधर लगातार टहल रहे थे ।
"पहले कापियाँ चैक करलो शर्मा जी ।"
"आप ही करलो । क्या फरक पडता है आपने करीं कि मैंने ।" शर्मा कुछ जाँचने व हस्ताक्षर करने से अक्सर कतराता है । 
गुप्ता जी काँपियों पर साइन करने लगे । साथ ही कक्षा की तरह डाँट-फटकार भी ---
"अरे बेटा ,यहाँ नाम नही रोलनम्बर लिखना है ।..अबे घोंचू तूने 5030 को 530 लिख दिया..ओफ्.ओ तूने सोमवार को सुबार लिख दिया है ... अबे उल्लू यहाँ तारीख नही वार लिखना है । पढ लिये बेटा ..बन गए कलेक्टर ..।"
"गुप्ता इतना शोर मत करो । परीक्षा है यह ।"
"क्या पढाते हो यार ।"--गुप्ता झल्लाया-- "ये तो लिखना भी नही जानते । पास हो भी गए तो आगे क्या करेंगे ।"
"करेंगे मेरा सिर---शर्मा भी कुछ खीज कर बोला---"अरे यार ! आम पूछ आम के लक्षण पूछ , यह कोई बात हुई ? आगे क्या करेंगे यह उनके मताई-बाप जानें । सरकार ने नियम बनाया है कि चौथी कक्षा तक कोई फेल नही करना है . ये लो पास करने में कौनसा पहाड़ तोड़ना पड़ता है . चार लिखो कि चालीस ..'मारगसीट' में नम्बर ही तो लिखने होते  हैं .यह तो कही लिखा नही है कि पास करने के लिये इतनी इतनी योग्यता होनी चइये . .प्राइमरी वाले सोचते हैं कि उनके यहाँ से निकल जाएं बस फिर हमें क्या भुगतें मिडिल वाले . 
"अरे यार मिडिल में भी तो बच्चों को जैसे तैसे निकालने की ही रस्साकसी होती है कि जाने हाईस्कूल वाले .. और वहाँ भी यही रिजल्ट बनाने की कबायद ..नही तो दस स्पष्टीकरण दो ,वेतनवृद्धि रुके .. शासन को भी तो वही आँकड़े ही चाहिये .योग्यता की चिन्ता किसे है . ऐसे में नुक्सान होता है बच्चों का ही .."
" शासन क्यों पालक भी तो सिरफ अच्छे नम्बर चाहते हैं . असल नकल से ..कैसे भी आएं .तब हम क्योंं सालों की चिन्ता करें .इसीलिये कह रहा हूँ, लिखादे..लिखादे यार । कोई पहली बार ड्यूटी दे रहे हो क्या । ऐसे गलतियाँ ढूँढोगे तो होगई परीक्षा ..।"
गुप्ता लिखाने लगा---"लिख बेटा स सरौता का । उसपर ओ की मात्रा लगा । म मछली का व वन का उस पर डण्डा तो लगा हाँ ऐसे और फिर रस्सी का र ..।" 
इतने में आठ की घंटी बजी । सुस्त पर्यवेक्षकों में जाग्रति आई। पेपर फडफडाए और जीभ से उँगली गीली कर करके बाँटे जाने लगे । गुप्ता थोडा सुस्त है । दो चिपके पेपरों को अलग करने में कुछ सेकण्ड लगे कि शर्मा ने पेपर छीन लिये---"क्या करते हो यार , बच्चों का एक एक पल कीमती है ।"
पेपर बँटने की देर थी कि तिवारी आ धमका । सहायक शिक्षक तिवारी को शत-प्रतिशत परीक्षा-परिणाम दिलवाने का ठेकेदार माना जाता है । हेडमास्टर जी के साथ-साथ पालकों से भी उसे काफी सम्मान और अधिकार मिला हुआ है । 
"एक ही घंटे में सब कराना है । पहला दिन है । कोई न कोई आएगा जरूर ।"
उधर मि गौतम गोपनीय रूप से हर कमरे में सन्देश पहुँचा रहे थे कि "अपने हाथ बचाते हुए काम करें । कहो तो सब कुछ होने पर भी कुछ न हो और कहो तो छींकने पर ही स्पष्टीकरण माँग लिया जाए । आ पडी तो कोई हाथ नही लगाएगा ..।" 
गुप्ता ने गुन गुनकर पेपर पढा । शर्मा ने आशाभरी नजरों से देखा--" कुछ समझ में आया ?"
"हाँ आ तो गया । ओटी करा देते हैं और क्या..।"
"ठहरो पहले तिवारी के ट्यूशन को देख लिया जाए ।"
"ट्यूशन ?--गुप्ता चौंका---ये तो इसी स्कूल के बच्चे हैं । ट्यूशन अपने ही बच्चों का ? क्लास में क्या करता है तिवारी ?"
"अरे गुपता जी , आप तो निरे भोलानाथ हैं । मास्टर कक्षा में पढाएगा तो टूसन पढने क्या परिन्दे आएंगे ?"
"फिर तो मैं मदद नही करूँगा । तिवारी को भी इसका अहसास होना चाहिये ।"
गाडी चलते-चलते रुक गई एक झटके के साथ । छोटे--छोटे यात्री इस अप्रत्याशित विराम से हैरान थे । दूसरे कमरों में तो गाडी धडल्ले से चल पडी थी ।
एक..दो..तीन..चार..पूरे पाँच मिनट होगए । सभी छात्रों की नजर इन दोनों माँझियों पर टिकी थी जो उन्हें अथाह 'भौसागर' से पार ले जाने वाले थे ।  
"करादो यार .." शर्मा ने बच्चों की कातर दृष्टि से पिघलकर कहा---"ये सब तुम्हारे ही भरोसे बैठे हैं । दूसरे कमरों में तो आधा करा भी दिया होगा ।" 
गुप्ता ने भी दयार्द्र होकर हिसाब लगाया एक गद्य ,एक पद्य एक जीवनी, एक पत्र और एक दो प्रश्न..बस बेडा पार ..। तो रामखिलाडी , यार कुछ तुम भी देखो न ।"
"हें हें ..गुप्ताजी..तुम तो जानते हो हिन्दी मेरा सब्जेक्ट नही है ।"
"हिन्दी किसी का सब्जेक्ट नही रहता "--गुप्ता ने झल्लाकर कहा--"कमजोरी जितनी भी है साली , हिन्दी में ही होती है ।" 
"क्या तुम्हें भी नही आ रहा ..।"
"कमबख्त लेखक का नाम भूल रहा हूँ ।---गुप्ता ने माथे का पसीना पौंछा-- ये बोर्ड वाले भी खूब हैं । भला इतना कठिन पेपर रखने की क्या जरूरत है ।" 
"किसी को बुलालो ..।"
गुप्ता ने खिडकी में झाँककर देखा ही था कि एक लडका लपककर आगया ।
"क्या चाहिये साब । सब बतादो..।"
"पहले तू इस गद्य का अर्थ ले आ । पता नही कौनसे 'दुबेदी' का है । और हाँ बाहर का इन्तजाम तो..।"
"आप चिन्ता मत करौ साब । एक लडका अटारी पर है दूसरा नदी की तरफ नीम के पेडपर और तीसरा दूसरे रास्ते में मन्दिर पर ..। कोई भी जीप गाडी इन्ही दो रास्तों से आएगी । जैसे ही कोई खतरा लगेगा , सीटी बजेगी । आप 'सतरक' होजाना ।"  
थोडी देर में ही गुप्ता के हाथ में कागजों का पुलिन्दा था और फिर इबारत शुरु होगई--"लिखो यह गद्यांश ...द के नीचे छोटा सा तिरछा डण्डा लगादो..और य पर डण्डा और बिन्दी..।....अरे सब एक ही पेज में मत लिखो सालो....मरवाओगे क्या ।"
"माडसाब ,इधर आके बोलो .।" एक लडका रौब से बोला ।
"यार शर्मा--गुप्ता की त्यौरियाँ चढ गईं--- "इस लडके की बडी परेशानी है । लिखना तक तो जानता नही । 
"कुछ मत पूछो । बाप जब देखो पीछे पडा रहता है । पीछे पडा है कि किसी तरह पास करवाओ । जब भी गली से निकलो बिना चाय--सिगरेट के उठने नही देता । 'बीओ' ,'डीओ' सबसे हेलमेल है उसका ।"
" फिर ?"
" फिर क्या , लिखाए बिना गति नही है । वैसे भी इतनी श्रद्धा रखने वाले का बच्चा पास न होगा तो कौन होगा । देखा नही रोज तर माल खाने मिलते हैं । कहाँ से ..?"
"इतनी सजगता पूरे साल पढाई के लिये रहे तो .?"
"सजगता !"--गुप्ता हँसा---"चोर बने हुए हैं हम । पकडे गए तो मुफ्त में मारे जाएंगे । न स्कूल हमारा न लडके हमारे ..।"
"कैसी दिलफटी बात करते हो गुप्ता ? अरे दिल भी तेरा ,हम भी तेरे । नमकीन भी तेरा ,पेडे भी तेरे ..।"--तिवारी ने तुक जोडकर ठहाका लगाया । 
कमरों में भारी सरगर्मी थी । खिडकियों पर फुसफुसाहटें, भागदौड , चिटों का आदान-प्रदान, कानाफूँसियाँ---'अरे साब सबको लिखादो' .निबन्ध होगया ? ..पत्र ले लो । ...क्या कुशवाह मना कर रहा है ? कल से उसकी ड्यूटी लगाना ही मत ..।
शिक्षकों के होंठ कमरे में हिल रहे थे आँखें मुख्य दरवाजे पर और कान सुदूर रास्ते पर चिपके थे । बीच-बीच में मि, गौतम जूतों की चरमराहट के साथ राउण्ड लगाते उस समय हर कमरे से सुनाई देता--"ए सीधे बैठो ,...आवाज मत करो ...शान्त रहो ।" 
उधर माथुर और तिवारी में तूतू मैं मैं होने लगी । माथुर का आरोप था कि तिवारी केवल अपने ट्यूशन वाले बच्चों को व्यक्तिगत तौर पर नकल करा रहा है । तिवारी माथुर पर बच्चों को बरगलाने  का आरोप लगा रहा था । शर्मा ने दोनों को किसी तरह शान्त कराया--"भाई लोगो यह समय व्यक्तिगत टसल को छोडकर बच्चों के हित पर ध्यान दो ।" 
तभी अचानक हडकम्प मचा । खबर हुई कि एक दो सवार वाली 'फटफट' (मोटरसाइकिल) आती देखी गई है । बस 'सफाई' का आन्दोलन सा छिड गया । खामोश रहने की चेतावनी युद्धस्तर पर दी जाने लगी । जिन छात्रों को बडी उदारता से लिखवा रहे थे , कुछ पूछने पर तमाचे रसीद करने लगे -
"कमबख्त ...स्सालो.. हमारी जान पर बनी है और इन्हें लिखने की पडी है । पास होकर बेटा पूछोगे भी नही कि माडसाब मरते हैं कि जीते हैं ..।"
शान्ति स्थापित कर सब दिल थामे उस गाडी का इन्तजार करने लगे । गाडी पास आई ..आई और फर्राटे से निकल गई ।
"अरे कोई ठेकेदार था "--तिवारी ने हँसते हुए बताया ।
"लेकिन पट्ठे ने सबकी हालत पतली करदी । क्यों गुप्ता !"
"मरवाओगे यार । रिजल्ट तुम्हारा बन रहा है ,खतरों से हम खेल रहे हैं ।"
"फिर वही कायरों वाली बात । गुप्ता जी भूलो मत कि आप बच्चों का भाग्य बना रहे हैं ।"

सभी पर्यवेक्षक फिर अपने काम पर तैनात थे । जरा खतरे का अहसास होते ही चिटें गोल होकर जेबों में चली जातीं और खतरा टलते ही फिर खुलकर बाहर आजातीं । इस तरह गोल होने व खुलने से चिटों की हालत खस्ता हो रही थी । लेकिन चिटों को भी यह सन्तोष होगा कि वे छात्रों के भाग्य-निर्माण में शहीद हो रहीं हैं । 
और भाग्य निर्माण में जरा सी कसर रह गई थी कि जिला शिक्षाधिकारी की जीप के आने की सूचना हुई । केन्द्राध्यक्ष सहित सभी पर्यवेक्षकों की साँस अधर में लटक गई । आनन-फानन में अभ्यस्त कलाकारों की तरह एक बार फिर पलक झपकते ही सफाई होगई ।
एक चौराहे पर गाँव के दो चार लोग बतिया रहे थे-- 
"सिन्हा साब अब क्या रेबडी लेंगे यहाँ आकर..?"
"सिन्हा बडा सिद्धान्तवादी है ।"
'हमने बहुत देखे हैं सिद्धान्तवादी । सब इसके ( उँगलियों पर रुपयों का संकेत करते हुए )खेल हैं ।"
"देखते हैं । वैसे चिडिया दाना लेकर उड चुकी है । सिन्हा को कुछ मिलने वाला नही है ।" 
जीप में से आधा दर्जन निरीक्षक उतरे । और एक एक कमरे में किसी आतंकवादी की तरह घुस गए । और बारीकी से तलाश करने लगे । अगर कोई प्रकरण नही बना तो निरीक्षण कैसा । उन्हें विश्वास था कि अपराधी अपराध का कोई न कोई चिह्न जरूर छोडता है फिर नदगवाँ गाँव तो संभागभर में प्रसिद्ध है नकल के लिये । कहा गया है कि कोशिश करने वालों की हार नही होती । सिन्हासाब ने एक छात्र को पकड ही लिया ।
"बेटा क्या नाम है तुम्हारा ?"
"ग गो गोपा....नही असोक..।" सिन्हा साब की पैनी नजर ने सब समझ लिया । और पूछताछ की तो लडके ने सब उगल दिया ।
"साब मेरी गलती नही है मुझे तो..।"
सिन्हा को मसाला मिल गया । लडके को कापी सहित ऑफिस में लेगए ।
"आप क्या सबको बेवकूफ समझते हो मि. गौतम । बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड कर रहे हो । जानते हो यह मामला कितना गंभीर है ।"
"अब जो भी हो साहब...सब आपके हाथ में ...।" 
"कोई हाथ में नही है । वीरेन पूरी रिपोर्ट बनाओ । देश का निर्माण इनके हाथ में है बताओ तो ...ऐसे लोगों के कारण शिक्षा विभाग की बदनामी होरही है ।" 
गौतम की सीधे सिन्हासाब से बात करने की हिम्मत नही हुई । उनके एक सहायक को कोने में लेजाकर मामला निपटाने पर विचार करने लगा । 
"मामला बहुत बडा है गौतम साहब । सस्पेंसन छोडो सीधे 'टर्मीनेसन' का प्रकरण है ।"  
"सर ,अब जो भी है आपके हाथ है । जैसे भी कहो...।"
"पहले नही सोचा यह सब...?"
केन्द्राध्यक्ष अधिकारी के चमचे के हर वार को गजब का धैर्य दिखाते हुए सहते रहे ।
इसके बाद दोनों के बीच क्या बात हुई यह तो पता नही पर सिन्हा अपनी टीम के साथ खुशी-खुशी गौतम जी से विदा ले रहे थे ।
कुछ ही मिनटों बाद धूल का गुबार छोडती हुई जीप ओझल होगई । 
गुप्ता ने अपना रोष पूरे वेग से निकाला--
"कल से हमारी ड्यूटी मत लगाना । आप हमें पागल समझते हैं सर ? हमारे कमरे में इतना बडा घोटाला ? अशोक की जगह गोपाल..! वह भी जिले के अधिकारी ने पकडा ..!"
"अरे भाई ,जिले का हो या संभाग का ..ये अधिकारी बुरी हवा की तरह आते हैं ,चले जाते हैं । इन्हें क्या पता नही कि कहाँ क्या होरहा है । इन्ही के यहाँ सेन्टर और 'सी एस' की दुकान लगती है । मनचाहे केन्द्र की बोली लगती है बोली । समझे । सख्ती को 'सख्ती' के अर्थ में लेना नासमझी है मेरे भाई । चिन्ता क्यों करते हो गुप्ता जी ?"
"अब जल्दी करो । ढाई घंटे की मेहनत के बाद भूख लगी है जोरों की ।" 
तिवारी ने कहा । शर्मा कागज की प्लेटों पर हलवा और पकौडे सजाने लगा । 

5 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद डा. रामकुमार जी । तीस पाठकों में केवल आपने टिप्पणी जो की है । पाठक या तो टिप्पणी करना नही चाहते या शायद उनकी समझ में रचना उतनी लायक नही होती । जो भी हो । पाठकों की राय बहुत मायने रखती है किसी भी रचनाकार के लिये ।

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  2. sach ke kitna kareeb .pls mujhe mail kijiyega ab jab bhi kuch likhe
    http://thoughtpari.blogspot.in/

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  3. चोर बने हुए हैं हम । पकडे गए तो मुफ्त में मारे जाएंगे । न स्कूल हमारा न लडके हमारे ..।"
    "कैसी दिलफटी बात करते हो गुप्ता ? अरे दिल भी तेरा ,हम भी तेरे । नमकीन भी तेरा ,पेडे भी तेरे ..।"--तिवारी ने तुक जोडकर ठहाका लगाया ।
    इस पर फिर लोट पोट हो गया बेहद गहरी कहानी है ये शिक्षा विभाग की प्रासंगिकता को चुनौती देती हुएी ऊपर आपकी टिप्पणी पढ कर अफसोस हुआ कि टिप्पणीयाँ कम आएीं मैं भी हैरान हूँ वैसे इसका सीधा सा कारण है कला से दूर जाता समाज जिसमें अभिभावक पूरा योगदान दे रहे हैं इस पर भी लिखूँगा विस्तार से पाटी पर

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  4. लचर और भृष्ट शिक्षा प्रणाली, रोजाना की जिन्दगी के गिरते हुये मूल्यों का सफल चित्रण करती हुई सशक्त कहानी

    Manju Mishra
    www.manukavya.wordpress.com

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