दरवाजे पर दस्तक हुई
तो गीतिका का मन कह उठा---"शायद विनीत आगया .”
तीन दिन हुए जब विनीत इन्टरव्यू
के लिये दिल्ली गया था . कम्पनी वालों ने उसका चयन तो कॉलेज कैम्पस में ही कर लिया
था . अब साक्षात्कार की औपचारिकता मात्र थी . जॉब तो पक्का हो ही गया है बस
नियुक्ति-पत्र मिलना शेष है . जॉब भी ऐसा वैसा नहीं , शुरु में ही पच्चीस-तीस
हजार रुपये महीना देने वाला जॉब है . चार हजार में ही पूरा महीना खींचने की
ज़द्दोजहद से मुक्ति . अर्थ के अभाव के साथ पारिवारिक , सामाजिक मान और सम्बल का
अभाव भी जुड़ा होता है . गीतिका अर्थाभाव की किसी अँधेरी सुरंग से बाहर आने वाली
है इसमें अब शक की कोई गुंजाइश नहीं है . यह विश्वास उसे बड़ा बल दे रहा था .
स्नेह और विश्वास का
सम्बल तो उसे किसी से कभी मिला ही नहीं . न बचपन में न ही विवाह के बाद . पति से
नहीं , इसलिये परिजनों से भी नहीं . विवाह ऐसे परिवार में
हुआ जहाँ माना जाता है कि पति भले ही स्वेच्छाचारी हो , आलसी और निकम्मा हो पर
पत्नी को हर जिम्मेदारी निभानी होती है ,चाहे उसे कहीं भी काम करके ही सही .लेकिन
मर्यादा में रहकर . विवाह के बन्धन-स्वरूप गीतिका को दो बच्चों की माँ का खिताब तो
मिल गया, लेकिन उनके पालन-पोषण के लिये केवल माँ के खिताब से काम नहीं चलता ,
आवश्यक बजट चाहिये . पति ने कह दिया “मैं कुछ नहीं जानता . तेरे
बच्चे हैं तू जान ..”
कहना चाहती थी कि
सिर्फ मेरे क्यों , आपके भी तो हैं लेकिन जानती थी कि बहस करने का कोई लाभ नहीं परिजन
इस मामले में हाथ ऊपर कर लेते . तब बी ए तक पढ़ी गीतिका ने प्राइवेट स्कूल में
पढ़ाकर और कुछ ट्यूशन करके बच्चों की पढ़ाई व बेसिक ज़रूरतों को पूरा किया .
बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाया ,अपनी खाने पहनने की सारी इच्छाओं को कहीं
रसातल में डाल दिया था . जीवन की इक्का गाड़ी
को खींचते हुए उसे केवल एक उम्मीद सम्बल देती कि बेटा बड़ा और काबिल बन जाएगा तो
सारी मुसीबतें कट जाएंगी . संयुक्त परिवार में रहने के कारण कई खर्चों से बच गई थी
पर पति के गैरजिम्मेदार रवैया के कारण उसकी स्थिति भी ऐसी हर स्त्री की तरह तरस
खाने वाली ही थी .
वास्तव में पति का
सम्बल न हो तो स्त्री के सामने समाज से, परिवार से और स्वयं से भी जूझने के लिये
कई मोर्चे खड़े होजाते हैं . राह में आए गड्ढे और गहरे होजाते हैं जिन्हें भरने
में सारा मनोबल चुक जाता है कभी कभी तो पूरी जिन्दगी ही ..
पर अब वह दिन दूर नहीं
जब सहेजी गई उम्मीदों में फूल खिलेंगे . सारा आँगन महकेगा . घर की दीवारों
में झरोखे होंगे . सारा आसामान देखने लायक
बड़े बड़े झरोखे . कहा गया है कि उम्मीद
पर आसमान टिका होता है .
गीतिका की ऐसी
कल्पनाएं निराधार भी नहीं थीं . होनहार बिरवान की तरह विनीत में बचपन में ही
होनहार के लक्षण दिखने लगे थे .उसकी प्रतिभा और गुणों के कारण सभी शिक्षक आगे
बढ़ने में उसकी यथासंभव सहायता करते और खूब प्रोत्साहन देते थे . आठवीं के बाद उसे
स्कॉलरशिप मिलने लगी थी . बारहवीं कक्षा में इतने अच्छे अंक मिले कि एक
इंजीनियरिंग कॉलेज में उसे बिना किसी टेस्ट के प्रवेश मिल गया . कॉलेज भी शासकीय
होने से फीस भी काफी कम देनी पड़ी थी .
जिस दिन विनीत को
कॉलेज में ही एक बड़ी कम्पनी ने अच्छे पैकेज पर चुन लिया ,परिजनों ने अविश्वास के साथ इस समाचार को सुना था
. जो गीतिका को तरस खाती निगाहों से देखते थे वे कह रहे थे – “देखो
भगवान के घर देर है अँधेर नहीं . अब तुम्हारे दुख के दिन गए . मौज करोगी , कारों
में घूमोगी ...”
गीतिका मन ही मन हँसी
. सच है – ‘बनी के चेहरे पर लाखों निसार होते हैं .’
खट् खट् खट्...दुबारा दस्तक
हुई .
गीतिका ने पुलकित मन
से दरवाजा खोला . विनीत सामने था . थका हारा . जैसे कई दिन से सोया ,नहाया न हो.
“होगया
इंटरव्यू ?”
“हाँ
.”
“कहाँ
भेजेंगे , पूना , हैदराबाद या बैंगलोर ..?”
“आराम
से बात करते हैं माँ . बहुत थका हूँ ..पहले नहा लूँ . कुछ खा पी लूँ ..”
‘थका
तो होगा ही .. साक्षात्कार के लिये अधिकारियों सामने जाने कितनी देख खड़ा रहना
पड़ा होगा ..ठीक से कुछ खाया पिया भी नहीं होगा फिर जनरल बोगी में सफर कितना कठिन
होता है . यात्री ऐसे भरे होते हैं जैसे अलमारी में जबरन ठूँसे गए कपड़े . पाँव
रखने तक की जगह मिल जाए तो गनीमत .विनीत जैसा सुन्दर सुकोमल बच्चा क्या ऐसे सफर
करने लायक है ? पर रिजर्वेशन में तीन गुना पैसा अधिक लगता है . पढ़ाई
और सुविधा दोनों के लिये एक साथ सोचने की अनुमति उनकी स्थिति नहीं देती .’ विनीत
ने कभी इसकी शिकायत भी नहीं की . माँ को ही समझा दिया ---
"छोड़ो
न, मम्मी इतनी भी परेशानी नहीं . हम जैसे
कितने लोग जनरल में ही सफर करते हैं . वे भी तो इन्सान हैं . फिर मैं अभी अच्छा
खासा हूँ . सफर कर सकता हूँ . चिन्ता न करो . तुम्ही तो सुनाती रहती हो—“”जितने
कष्ट कंटकों में है जिनका जीवन सुमन खिला .गौरव गन्ध उन्हें उतना ही यत्र तत्र
सर्वत्र मिला .”
वह सब याद कर गीतिका गद्गद्
हो गई -“मेरा राजा बेटा . ईश्वर तुझे वह सब दे , जो तू चाहे
..”
“हाँ
..विनीत अब बता कैसा रहा इन्टरव्यू ? ,कहाँ
मिलेगी पोस्टिंग ? गीतिका ने बेटे को खाना परोसकर पास ही बैठकर पंखा झलते
हुए पूछा .
“मुझे
कोई पोस्टिंग नहीं मिलेगी मम्मी !”
गीता अवाक् बेटे का
मुँह देखने लगी .
“मज़ाक
नहीं कर रहा मम्मी .”
“साफ
साफ बता ,क्या हुआ है .”
“रिजेक्ट
कर दिया गया हूँ और क्या . “
गीतिका की समझ में कुछ
नहीं आया . दिमाग जैसे ठप्प होगया . कॉलेज का टॉपर . कम्पनी ने सबसे पहले उसका चयन
किया . लेटर भी दे दिया . पैकेज वगैरा सब तय था फिर कम्पनी कैसे मना कर सकती है .
“कहीं
प्राइवेट कम्पनियों में भी सिफारिश और लेन देन तो नहीं चलता ?”
“नही
मम्मी ,ऐसा होता तो मुझे सिलेक्ट क्यों करते ?”
“तो
फिर ?”
“कलर-ब्लाइन्डनेस
के कारण .”
“ब्लाइन्ड
! ..चल
हट .”–-गीतिका ने बेटे की बात नकारदी . ऐसी बड़ी बड़ी साफ सुन्दर
आँखें जिन्हें चश्मा की भी ज़रूरत नहीं . दूर से चीजें पहचान लेता है . शरद
पूर्णिमा की रात छोटी सुई में धागा वह सबसे पहले डालता है कम्पनी वालों से भूल हुई
है . तुझे पता है एक बार डाक्टर गुप्ता के यहाँ एक कम्पाउण्डर ने मेरा वी पी हाई
बता दिया . मैंने कहा डाक्टर साहब आप खुद चैक करिये मुझे तो वी पी की शिकायत आजतक नहीं
हुई . और वही हुआ . डाक्टर ने दोबारा चैक किया तो पहली रिपोर्ट गलत साबित हुई ..
“मम्मी
कलर ब्लाइण्ड का मतलब अन्धापन नहीं होता . मिश्रित रंगों द्वारा एक खास तरह का
परीक्षण होता है , जिसमें उम्मीदवार किसी कलर को नहीं पहचान पाता . ”
“तो
कहीँ किसी और कम्पनी में कोशिश कर बेटा . हर कम्पनी में तो ऐसा नहीं होगा न ?”
“अब
मुझे कहीं उम्मीद नहीं है .”—विनीत हताश स्वर में
बोला .
“
वर्णान्धता का दोष टैक्नीकल लाइन में स्वीकार नहीं किया जाता ,दुर्भाग्य से मैंने
पढ़ाई तो यही की है .”
“तो
क्या कोई जॉब नहीं मिलेगा ?” गीतिका को जैसे किसी ने बहुत ऊपर लेजाकर धकेल दिया .
“पता
नहीं .” –--कहकर विनीत कमरे में चला गया माँ को जैसे तपती रेत
पर छोड़कर . उसने पहली बार माँ को इतनी निस्संगता के साथ उत्तर दिया था .यह उसकी
निराशा की पराकाष्ठा थी .
गीतिका ने देखा एक तेज
अन्धड़ उठा और सारे पेड़ धराशयी होगए . सालों से बुनी सपनों की चादर तार तार होगई
हैं .आँखें धूल से भर गईँ हैं . आँधी आई और छप्पर को उड़ाकर लेगई .. अभावों के
दरिया को पार करने के लिये जो एकमात्र नाव थी उसमें भी सूराख निकला .
एक नौकरी का महत्त्व
वही जानता है जिसने अपने मुँह पर ताला लगा कर पढ़ाई की हो , सारी ज़रूरतों की गठरी
बाँधकर रसातल में डाल दिया हो सिर्फ इस उम्मीद में कि नौकरी लगने पर वह गठरी खोली
जा सकेगी . अब वह सिसक रही थी अँधेरे में पड़ी . उस पर लोगों के दस तरह के सवाल –
“कब
जा रहा है विनीत ?”
“तुम्हें
तो घर काटने दौड़ेगा उसके बिना .”
“तो
क्या हुआ , कोई ऐसे ही थोड़ी जा रहा है . इतना कमाएगा कि रखने
को जगह न होगी गीतिका के पास .”
“सो
तो है , भैया हमें तो मिठाई चइये .”
गीतिका क्या कहे ,कैसे
कहे कि दौड़ लगाने के बावजूद विनीत ट्रेन पर नहीं चढ़ पाया . कि गागर घाट तक आते
आते छूटकर कुँए में जा गिरी हो , कि किसी कमी के कारण उसे नहीं लिया गया ..क्या
सुनना चाहोगे ..सच सुनकर दुख किसे होगा . ज्यादातर लोग दूसरे के दुख के कारण खुद को सुखी महसूस करते हैं . निराशा व दुख के घोर अँधेरे में अकेली भटक रही थी वह . किसको क्या कहे .
“हमारे
गुरुजी ने कहा है कि अभी पढ़ने दो बच्चे को . आगे बहुत बड़ा अवसर मिलने के योग हैं
..यह नौकरी तो उसके आगे कुछ भी नहीं है ...अरे हाँ हाँ वही गुरूजी जिनकी बातें
हमेशा सही निकली हैं . हमारे संकट टले हैं .”--गीतिका
ने यही ज़बाब रट लिया है . फिर यही उसे सच भी लगने लगा है .वह सच उम्मीद की किरण बन गया .
“बेटा
इस तरह निराश ना हो .ईश्वर एक दरवाजा बन्द करता है तो दस द्वार खोल भी देता है
.कोशिश तो करो .”
“कहीं
भी कोशिश करूँ मम्मी , किसी कम्पनी में इंजीनियरंग की जॉब नहीं मिलेगी .”
“कोशिश
करने वालों की हार नहीं होती , असफलताओं के बीच ही सफलता की गूँज छुपी होती है .
यकीन करो कि ईश्वर जो करता है अच्छे के लिये करता है .”---गीतिका
ने उसे हौसला देने की कोशिश की तो विनीत बिफर पड़ा था -
“ आपको
अन्दाज भी है कि मुझसे क्या छूट गया है ..मैं किस चौराहे पर खड़ा हूँ ? "----विनीत ने हताश स्वर
में कहा –"आप आसानी से यह कह सकती हैं मम्मी , पर मुझपर क्या
गुज़र रही है मैं ही जानता हूँ आपको क्या ..”
“मुझे
क्या ! “.. गीतिका के हृदय से आह निकली .
विनीत को जॉब न मिलने
से कहीँ अधिक अपने रिजेक्ट होजाने का दुख और हैरानी थी . उसका कारण भी ऐसी कमी जिसके
लिये वह खुद जिम्मेदार नहीं था . यह कमी हर कम्पनी में बाधा बन सकती थी .तकनीकी क्षेत्र में तो बनेगी ही . फिर जिस कम्पनी ने आगे बढ़कर उसे चुना , उसने ही नकार दिया तो क्या उम्मीद रखी जा सकती है . कैम्पस में नौकरी का मिलना कितना आसान रहता है इसीलिये लोग ऐसे कॉलेज
में प्रवेश लेना चाहते हैं जिसमें कैम्पस की गारंटी होती है . फिर कहीँ भटकना नहीं
पड़ता ..अब उसमें इतना हौसला नहीं था कि वह जगह जगह कोशिश करे और बार बार असफलता
का सामना करे . असफलता और हीनता का अनुभव उसके लिये सहज स्वीकारने वाली बात भी नहीं
थी गीतिका दुखी मन से ऐसे तूफान का सामना कर रही थी जिसकी आवाज तक वह बाहर नहीं
आने देना चाहती थी . चहारदीवारी के भीतर
दो लोग चुपचाप घुट रहे थे और लगातार इस कोशिश में थे कि बाहर निकलने का कौनसा
रास्ता तलाशा जाय . जब बाहर निकलने की चाह प्रबल होती है तो द्वार खुल ही जाता है .विनीत को एक द्वार खुल गया.
“मम्मी
मैं ‘गेट’ का फॉर्म भर रहा हूँ .टैक्नीकल
जॉब मिले न मिले , एम.टैक.की डिग्री से किसी कॉलेज में पढ़ाने का अवसर तो मिल ही
जाएगा . डिग्री के दौरान स्कॉलरशिप मिलेगी तो कोई आर्थिक समस्या भी नहीं होगी ..
गीतिका को खुशी तो
नहीं हुई वह चाहती थी कि विनीत इंजीनियर बने पर फिलहाल यही उपाय था . सबसे बड़ी
बात कि पढ़ाई में विनीत हताशा से उबर सकेगा .
विनीत ने गेट में बहुत
अच्छे अंक प्राप्त किये . कानपुर आई. आई. टी में उसे प्रवेश मिल गया था . साथ ही इण्डियन
इंजीनियरिंग सर्विस की परीक्षा भी देदी थी . प्रश्नपत्र बहुत अच्छे हुए . छह माह बाद एम टैक की डिग्री मिलने वाली थी . कुछ महीनों बाद ही आई ई एस का रिजल्ट भी . समय
बस गुजर रहा था बिना किसी योजना कल्पना के . सारी आशा--अभिलाषाएं ईश्वर के सहारे
छोड़कर .
ऐसे ही दिन की बात है
. गीतिका अपनी सहेली के घर गृहप्रवेश के कार्यक्रम से अपने घर लौटी थी , रात के नौ
बज रहे थे . गीतिका ने हल्का सा धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया .
“अरे निशु ने दरवाजा अन्दर से बन्द नहीं किया ! कितना लापरवाह है ,यह
लड़का ? गेम खेलने में या कार्टून देखने में मस्त होगा . इसकी
ज़रा खिंचाई करनी होगी .”
गीतिका अन्दर पहुँची
तो हैरान रह गई . चारों ओर सामान बिखरा पड़ा था गद्दा चादर पलंग की बजाय नीचे फर्श
पर पड़े थे . किताबें मेज पर और अखबार अलमारी में नहीं थे . रसोई के डिब्बी डिब्बे
नीचे लुढ़के पड़े थे .
यह कैसा तूफान आया है
..गीतिका ने सोचा और चिल्लाई –--"निशान्त !..अरे
निशु ..इधर आना !”
निशु गुमसुम सा सोफा
पर बैठा था ,उठकर माँ के सामने आया .
“यह
क्या है ? पागल होगया है ?
“आप
सुनोगी तो आप भी पागल होजाओगी मम्मी .” निशु दोनों हाथ ऊपर तानते हुए चिल्लाया
“
मम्मी ..दादा को काफी बड़ी सफलता मिल गई है ..
“देख
निशु अगर तू हर बार की तरह मज़ाक कर रहा है तो यह बहुत भद्दा मजाक है . “
“अरे
मम्मी यह मजाक करने वाली बात है क्या ? आई ई एस का रिजल्ट आया है . दादा बहुत अच्छी पोजीशन से पास हुए हैं . साथ ही कॉलेज कैम्पस में उन्हें इसरो के साइंटिस्ट भी चुनकर गए हैं दादा को
.मेरा कहा न मानो , दादा खुद कहेंगे तब तो मानोगी .”
गीतिका की समझ में
नहीं आ रहा था कि कैसे विश्वास करे . दूध का जला छाछ को भी फूँक फूककर पीता है .
तभी विनीत का फोन आगया .
हाँ मम्मी मैं सचमुच फाइनली चुन लिया गया हूँ . इस बार कोई संशय या धोखा नहीं ..
“लेकिन
बेटा वह आँखों की बात ..? ”—गीतिका
को अभी भी डर था कि खुशी छिन न जाए .पूरी तरह यकीन कर लेना चाहती थी .
“मम्मी
सब जानने के बाद ही मुझे चुना गया है .अब कोई बाधा नहीं है .
गीता कुछ पल अवाक्
खड़ी रही .इस उपलब्धि पर एकाएक उसे विश्वास ही नही हुआ . आज ईश्वर के छप्पर फाड़कर
देने वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी . खुशी के मारे वह रो पड़ी . फिर कमरे में
नज़र डाली ,जहाँ चारों ओर सामान इधर उधर पड़ा था . यह दूसरी तरह का तूफान था
जिसमें नीरवता नहीं थी , शोर था, उमंग थी उम्मीदें थीं ,तमाम सपनों की गूँज थी .
‘तूफान
केवल विध्वंस का प्रतीक नहीं होते ,कभी कभी उनमें निर्माण की गूँज भी होती है .’
यह सोचकर गीतिका
आँसुओं के बीच भी मुस्करा उठी .