"अरे बादामी ! ओ बामौरवाली
...कहाँ गई सब ?
जरा सौजनेवारी को तो बुलाओ .. हें..! अभी आई नहीं ?
हे मेरे भगवान ! पाँव में चक्कर है उसके । एक पल यहाँ
दिखती है तो दूसरे पल पच्चीपाडे में ..।"
भागवती बुआ का गला बैठ गया है चिल्लाते-चिल्लाते । नौतारिनों से घर भरा है
पर किसी का सहारा नही । कोई सिंगारपट्टी में लगी है तो कोई मेंहदी महावर में ।
लड़कियों ने अब नई चाल सीखी है . वे माँग पट्टी के लिये भी ‘बूटी पाल्लर’ जाएंगी ..
क्यों न जाएं , लडके का ब्याह है । घर के कामों में लग जाएंगी तो बारात के
लिये साज-सिंगार कैसे होगा
"मुरैना वाली जीजी ने इस बार बडा अच्छा किया जो रोटी और बर्तन वाली
लगा ली ।"---एक महिला पैरों में महावर लगाते हुए कह रही कह रही थी ---
"पैसा तो लगता है पर सारी 'टेंसल' खतम् । नही तो सारी
बहू-बेटियाँ रसोई में लगी रोटियाँ सेकतीं पसीने में नहाती रहतीं...काहे का साज
सिंगार ..। "
बडा परिवार ..। शादी-ब्याह का घर लगुन के बाद बहू आने या बेटी जाने तक रोज पचास
आदमी की रोटी बनती है । बिन्नी के ब्याह में क्या हाल हुए । चार जनियों के हाथ तो
सूख भी नही पाते थे । कभी चार खाने वाले आ रहे हैं कभी छह...। अम्मा और ताई ऐन
चिल्लातीं रहतीं कि एक संग खाओ पिओ और छुट्टी करो । यह कोई होटल या ढाबा नही है पर
घर की औरतें रसोई तपाने बैठीं हैं तो कोई ठण्डी क्यों खाए । बेचारी रोटनहारी
नचने-गाने की तो बात सोच भी नही पातीं थीं । ब्याही-थ्याई बेटियाँ तो फिर भी मेहमान
होतीं हैं । वे तो गाने-बजाने और सजने-सँवरने का काम ही ठीक से करलें तो बहुत
है । चूल्हे में झोंकने और बासन माँजने
बहुओं की कमी नही होती । चाचा-ताऊ, मामा-मौसा, की बहुएं और साली-सलहजें ...पूरी फौज होती है पर पहले तो
बेचारी रोटी का इन्तजाम करने में ही लगी रहतीं थीं । दोपहर की जेवनार खत्म नही
होती कि संझा की रोटी चढने का समै होजाता । सगाई--ब्याह का सारा उछाह पसीना बन कर
बह जाता था बेचारियों का । सच्ची में बहुत अच्छा किया जीजी .खाना बनाने वाली का
इन्तजाम होगया ..
"पंचायत मत बिठाओ भागवानो ! लगुन का समै हो रहा है । लड़की वाले लगुन लेकर दरवज्जे पर आ खड़े होंगे तब
तैयारी करोगी का ?” –भागवती
बुआ ने हाँक लगाई .
मानसिंह चौहान के घर में टीका-लगुन के उत्सव की धूम-धाम
है । चार दिन बाद वे सबसे छोटे बेटा अमन की बहू को ब्याहने जा रहे हैं । ढोलक
मंजीरों पर सुरीले कण्ठों से ‘बन्ना’‘भतइया’ गाए जा रहे हैं । अमन की बुआ भागवती
कमर में साड़ी खोंसे चाबियों का गुच्छा लटकाए इस कमरे से उस कमरे में जाती हुई
पूरा गला खोलकर निर्देश दिये जा रही हैं----“अरी विद्या ,लड्डुओं के पैकिट बन गए कि नही ? बिन्नी तू अभी चूड़ी-बेंदी की मैचिंग में लगी है ! टीका के महूरत का टैम होने
जा रहा है । रिश्तेदार दरवाजे पर बैठे हैं । तू पहले जल्दी से थाली तैयार कर ।
क्या-क्या रखना है ? ...अरी बाबरी तीन ब्याह करवा चुकी है फिर भी बुआ से
पूछे बिना कुछ ना करेगी । रखना क्या है हल्दी सुपारी की गाँठ ,कलावा, घी
का दिया ,रोली,चामर दूब, फूल
जल का लोटा ,और...और ...चल
तू इतना तो लगा फिर जो जो याद आएगा मैं बताती जाऊँगी । अरे भैया लोगो हियां भीत
जैसे खडे न रहो .उधर कुर्सियाँ का दिखावे के लें पडी हैं ?...अरे राम ,…क्या
क्या देखूँ !
मैं इधर लगन टीका की तैयारी करवा रही हूँ उधर हलवाई सूती कपडा माँग रहा है . बडी बहू तू देख ,कोई साफ धोती हो ..और
जरा इस अमन की महतारी को देखो तो ....न ‘टैम देखे न कुटैम’ ..
औरतों को देखने सम्हालने की बजाय यहाँ कोने में बैठी है मातमी सूरत बनाए. अब यह
समय ‘टसुए’ बहाने का है ? जो लिखा था किस्मत में ,होगया...किस्मत पर किसी का जोर है भला !
हाँ जी किस्मत का ही तो खेल है सब ।
आँगन मर्द-औरतों से खचाखच भरा है पर अमन की माँ अमलादेवी का मन वेदना से बिलख
रहा है . खुशी की यह घड़ी उसे पराई लग रही है . आज विशाल होता तो नाच रही होती
अमला पर ऐसी मनहूस घड़ी आई कि विशाल उनका मँझला बेटा भरे-पूरे परिवार को बिलखने के
लिए छोड़ गया . चार-पाँच महीने ही तो हुए हैं जब एक दोस्त से मिलने बाइक से हेतमपुर गया था . कर्मों का खेल ,रास्ते
में जब एक पत्थरों से भरा ट्रैक्टर पलटा तब वह उसी जगह से गुजर रहा था । तीन-चार
पत्थर उछलकर सिर से टकराए तो वहीं ढेर होगया . बोल भी ना निकला मुँह से । खून में
लथपथ घर लाया गया तब तक पखेरू उड़ चुका था . अमला की आँखों के सामने देखते देखते
एक पूरी दुनिया उजड गई । जवान बहू की माँग सूनी होगई. चूड़ी-बीछिया उतर गए । हिरदै बस फट ही नही पाया । माँगे मौत भला
मिलती है ? अभागी माँ , छाती पर सिला रक्खे मन मारकर सब देख रही थी ।
न देखती तो और क्या करती . अमन पूरे बत्तीस का हुआ जारहा था । कैसे-कैसे यह रिश्ता ‘पार लग’ रहा था अमला ही जानती है .लड़कों के ब्याह में अब बड़े
झंझट हैं . दस तरह के सवाल ,दस तरह के अटकाव .
“कितना पढ़ा हैं ?
नौकरी है कि नही ?..है तो कहाँ करता है ?..कितना
‘महीना’ मिलता है ?..’नसा-पत्ता’
तो नही करता ?”..... पहले कहाँ इतनी पूछताछ
होती थी लड़कों की ......
“ लड़की वालों के अब तो भाव ही नहीं मिलते .”“
भागो बुआ इस मुद्दे पर अपना आक्रोश दबा नही पाती---“लडका सुन्दर हो ,कमाऊ हो घर का मकान भी हो तब तो लड़की वाले दरबज्जे पर
पाँव रक्खेंगे नही तो नही..।
और ‘देन-दाइजे’
के नाम पर कानून की धौंस अलग । लडके वालों की तो मुसीबत है सच्ची . कलेजा काटकर ल़ड़के
को पालो पोसो ,पढाओ लिखाओ और सौंपदो ..पर न करो तो भी तो काम नही चलता ...वह तो
अमन के फूफा ने जोड़-तोड़
बिठा कर सगाई करवाई है .नहीं तो ...“
लड़के का ब्याह .खूब ‘हुब्ब-उछाह’
का दिन . आज लगन आ रही है जीजा रामकिसन अमन को टीका के लिये तैयार कर रहा है .सास से उसकी नज़र
उतारने की कह रहा है पर अमन की माँ का कलेजा आँखों के रास्ते बाहर निकलने को हो
रहा है . लाख कोशिश कर रही है भूलने की पर आँसू हैं कि जार जार बह रहे हैं . इधर उधर कोने में जाकर पल्लू से आँसू पौंछती
है , नाक सिनकती है .आँखें गुलमोहर का फूल हो रही हैं .यह देख भागो बुआ से न रहा गया .चिल्लाकर बोली--
“होश में आ अमला ! ...बेटा पटा पर बैठा है और तू आँसू बहाकर असगुन कर रही है !”
कम्मो , यानी कमलेस बडे बेटा चमन की बहू को जो अब तक ठहरी हुई सूखी सी निगाहों से कभी सास को
देख रही थी और कभी छोटे देवर अमन को , असगुन शब्द छाती पर हथौड़े जैसा लगा .
असगुन ..!..असगुन
!! असगुन !!!
चार-पाँच साल पहले की यही बात कमलेश के मन
में एक बार फिर बबूल के काँटे सी कसक उठी .
“ घर में बेटे का ब्याह है री कमलेस ,यों टसुए बहाकर असगुन
करने की जरूरत नहीं है . न हो सके तो कहीँ और जा के रो ले.....”
कहानी वही ,संवाद और वातावरण भी वही . केवल पात्र बदल गए हैं . अमला की जगह तब कमलेस थी . जब कमलेश ने एक बच्चे को जन्म दिया था और उसी समय चमन से छोटे विशाल
के ब्याह की तैयारियाँ चल रही थीं .
चमन ,विशाल और अमन मानसिंह चौहान के तीन बेटे हैं . एक बेटी बिन्नी जो सबसे छोटी है पर उसकी शादी सबसे पहले करदी गई थी .
चमन ,विशाल और अमन मानसिंह चौहान के तीन बेटे हैं . एक बेटी बिन्नी जो सबसे छोटी है पर उसकी शादी सबसे पहले करदी गई थी .
बड़े चमन की शादी कुछ देर से हुई .वह बड़ा होकर भी दोनों भाइयों से छोटा दिखता है.
‘सतमासा’
जनमा था ,बदन इकहरा और कद से छोटा रह गया है . उसपर बोलने में भी थोड़ा हकलाता है
.ज्यादा पढ़ लिख भी नहीं पाया था .
मानसिंह जानते थे कि अनपढ़ और बेरोजगार चमन को कोई अपनी लड़की इच्छा से तो
नहीं देना चाहेगा पर हमारे पिछली सदी के परम्परागत समाज में शादी को नौकरी या रोजगार से ज्यादा जरूरी माना गया . कुछ हो कि न हो पर सही
उम्र पर ब्याह जरूर होजाना चाहिये . इसलिये उन्होंने खुद अमरसिंह से उनकी बेटी कमलेश को माँग
लिया . अमरसिंह और मानसिंह चौहान की दोस्ती ‘दाँत-काटी’
रोटी जैसी थी . चमन को जानते हुए भी अमरसिंह मित्र को 'ना' न कह सके . चमन का ब्याह होगया पर
अमलादेवी के मन जैसा नहीं हुआ . कमलेश ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी . रंग रूप भी कुछ खास नहीं . बेटा कितना ही नालायक हो , असुन्दर हो पर बहू सुन्दर गोरी ,स्लिम ,सुशील और गृहकार्य में दक्ष ही चाहिये . जाहिर है कि कमलेश को सास के मन में वह स्थान नही मिला जो एक बहू का होना चाहिये .
इसलिये जब मँझले बेटा विशाल के रिश्ते की बात चली तो अमला ने खुद
लड़की पसन्द करने का फैसला किया . विशाल सुन्दर लम्बा और भरा-पूरा नौजवान था . उसी
के अनुरूप लड़की पसन्द करने में काफी समय लगा .कहीं लड़की ठीकठाक थी तो माँ
बाप के पास देने के लिये कुछ नही था . कोई दहेज के नाम पर धन की वर्षा करने तैयार
था तो लड़की में वांछनीय गुण नही मिलते . आखिर चार साल बाद एक रिश्ता पसन्द आया .जिसमें वह सब कुछ मिलने वाला था जो अमला चाहती थी .चमन का ब्याह कोई ब्याह था भला !
तभी दूसरी बड़ी और मनचाही खबर हुई कि कमलेश को ‘दिन चढ़’ गए हैं . पाँच साल में जो
नही हुआ , अब होने जा रहा था . अमलादेवी चहककर बोली—-“आने वाली बहू के पाँव शुभ हैं .”
अब घर में लगभग एक ही समय दो नए मेहमान आने वाले थे . चमन का बच्चा और
विशाल की बहू . सबको उस घड़ी का इन्तज़ार था .पर अमला को चिन्ता यह थी कि कहीँ कमलेस की जचगी और विशाल की लगुन बारात एक साथ न हो पड़ें . क्या क्या सम्हालेगी वह .
पर अच्छा हुआ कि कमलेस को ब्याह के दस-बारह दिन पहले ही प्रसव
पीड़ा शुरु होगई . रात का समय था .कमलेस ने सास को पुकारा
पर अमला गहरी नीद में थी .कह दिया कि रात में कहाँ जाएंगे . वैसे भी ’पहलौटी’ है . अभी टैम लगेगा ..दर्द आने दे .. अस्पताल पहले ही पहुँच जाओ तो दाइयाँ परेसान करतीं हैं ."
सास बात मानकर कमलेश रातभर दर्द से बेहाल होती रही .
सुबह हुई . कमलेश को ले जाकर हॉस्पिटल में एडमिट कराया . डाक्टर ने जच्चा की हालत देखी, तुरन्त ऑपरेशन करना पड़ा .लड़का हुआ पर उसकी हालत काफी नाजुक थी . डाक्टर ने अमला और दूसरे परिजनों को खूब डाँटा----आप लोग लाने में इतनी देर क्यों कर देते हैं ? बच्चे की साँस बहुत कमजोर चल रही है . अब हम करें तो क्या करें ?”
सास बात मानकर कमलेश रातभर दर्द से बेहाल होती रही .
सुबह हुई . कमलेश को ले जाकर हॉस्पिटल में एडमिट कराया . डाक्टर ने जच्चा की हालत देखी, तुरन्त ऑपरेशन करना पड़ा .लड़का हुआ पर उसकी हालत काफी नाजुक थी . डाक्टर ने अमला और दूसरे परिजनों को खूब डाँटा----आप लोग लाने में इतनी देर क्यों कर देते हैं ? बच्चे की साँस बहुत कमजोर चल रही है . अब हम करें तो क्या करें ?”
यह सुनकर सबको जैसे साँप सूँघ गया .भगवान ने लड़का दिया पर जरा सी लापरवाही से अब उसकी नन्ही जान खतरे में है . नर्स बच्चे को दोनों हाथों में लिये दौड़ती-हाँफती आई सी यू तक ले गई “सब कम्मो की गलती है . जब दर्द उठ रहे थे, क्या मुँह में
दही जमा था ? बरबाद होगए हम तो ...”
अमला ने जमकर अपनी भड़ास निकाली .पर कमलेश बेहोश थी .कौन सुनता . होश में
आते ही पूछने लगी—
“अम्मा क्या हुआ है .. बच्चा कहाँ हैं ?”
चमन ने कहा, जैसा उसे कहने को कहा गया था --“ बेटा हुआ है . उसे कुछ तकलीफ थी सो विशेष देखभाल में रखा गया है .
शुरु में तो लगभग हर बच्चे को रखा जाता है .” नर्स ने भी यही बताया . डाक्टर की हिदायत थी कि प्रसूता को अभी कुछ नही बताना है .
टाँके कच्चे हैं , आँतें कमजोर हैं ..कमलेश बच्चे का इन्तजार करती रही . नर्स और
डाक्टर उसे बचाने की कोशिश करते रहे पर कामयाबी नही मिली . तीन दिन बाद बच्चा वापस
वहीं चला गया जहाँ से आया था .
अमला ने घर आकर खूब रोना धोना किया . मोहल्ले की औरतों को कहती रही--–कम्मो
की नादानी खा गई हमें . ..करम फूट गए ..हाय मेरा छौना चला गया..
उधर छुट्टी होने तक कमलेश को यही बताया गया कि बच्चे का इलाज चल रहा है .
वह बेहाल थी छातियों से दूध बह बहकर बिस्तर भिगो रहा था ,ब्लाउज कड़क होगया था .वह
सबसे रिरियाती मिन्नतें करतीं --
“मेहरबानी करके उसे मुझे एक बार तो दिखादो मेरे लाल को ..”
“अब घर जाकर खूब देख लेना ....” चमन और क्या कहता .
चार दिन बाद विशाल की लगुन आने वाली थी . घर में तमाम काम थे . अमला पोते
का मातम अकेली ही मनाकर मुक्त हो चुकी थी अब बेटे की सगाई और लगुन की तैयारियों
में जुट गई .
कमलेश को छुट्टी कराकर चमन घर लाया तो आते ही अपने बच्चे को देखना चाहा .
“अभी नहा तो ले बहू ..अस्पताल से आई है .” अमला ने निस्संगता के साथ कहा .
नहाने के बाद पलंग पर आते ही वही सवाल , कुछ आतुरता और विकलता के साथ –--“अब तो ले आओ अम्मा ..क्या उसे अब भी मुझसे दूर ही रखोगी
..?”
“अब उसे कहा से लाऊँ री अभागिन
? मेरे हाथ कुछ नही रहा . भगवान ने छीन लिया हमसे....”—अमला ने रोते हुए कहा .
कमलेश कुछ पल जड़ होगई . उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मिली पर रोए
या जान दे दे ..
इसके बाद वह फूट फूटकर रोने लगीं . अमला ने समझाया –
“कमलेस ,आँतें
कटी पड़ी हैं ..ऐसे मत रो ..रोने से होगा भी क्या ? हमारी किस्मत में नहीं था उसका सुख . तू अब खुद को सम्हाल बेटी . तुझे कुछ
हुआ तो कौन सम्हालेगा घर गिरस्ती ..चुप हो जा .चल कुछ खा ले .. “
सास ने समझाया , मोहल्ले की औरतों ने दिलासा दी पर बच्चे की मौत माँ के
लिये कोई ऐसा घाव तो नही होती कि मरहम पट्टी की और ठीक होगया . हफ्तों ,महीनों और
सालों तक रिसने वाला घाव था . फिर अभी तो हरा था . ताजा कटी उँगली से बह रहे खून
की तरह ..रह रह कर रिस रहा था . वह अँधेरे में अकेली भटकती लहूलुहान हो रही थी .सब
विवाह की तैयारियों में लगे हुए थे . कोई उसके दुख का भागीदार नही था .वह भीतर के कमरे
में अकेली बिस्तर पर पड़ी थी .खुद को लाख समझाती पर वह , जिसे देख भी नही पाई थी ,नस
नस में दर्द बन कर उभर रहा था . जब तब कलेजे में हूक उठती और आँखों से एक नदी
भरभराकर फूट निकलती .
अमला को यह बहुत नागवार गुजरा . कहना नहीं मानती चमन की बहू . घर में शादी का माहौल है .इतने सालों बाद शुभ घड़ी आई है .और यह है कि आँसू बहाए जा रही है ! अन्दर कराल काली जाग उठी ---
“क्यों री कम्मो !
एक को तो खा गई बैरिन...अब क्या चाहती है ? घर
में सुभ-कारज होने जारहा है और तू
टसुए बहाए जा रही हैं ! जैसे वह हमारा तो कुछ था ही नही . कि हमें तो उसका कोई गम
नही ..यही दिखा रही है न ? खूब दिखा पर इस तरह आँसू बहाकर
मेरे बेटे के लिये असगुन करने की जरूरत नहीं ....समझी !
”
सन्न रह गई कमलेश . क्या वह असगुन करने के लिये आँसू बहा रही है . अम्मा
लाड़ले बेटे के ब्याह की खुशी में इतनी अन्धी बहरी हो गई कि एक माँ के आँसू उसके
लिये असगुन होगए . क्या पोते की मौत ही खुद एक बड़ा असगुन नही है ...वह भी जानती
है कि शुभ अवसरों पर आँसू नही बहाए जाते पर ये आँसू कलेजे को काटकर निकल रहे हैं .
कैसे रोके , कैसे थामे टुकड़े टुकड़े बिखरे कलेजे को ..
ऐसे में खुद को काबू में रखना तेज धारा को मिट्टी डालकर रोकना था ,पर चार
औरतों ने उसे कन्धे से लगाया ,पीठ सहलाई . उसके दर्द को समझते हुए हालात की ऊँच
नीच समझाई . कमलेश ने किसी तरह खुद को संयत किया . आँसू पौंछ लिये पर असगुन शब्द उसके हृदय में गढ़कर
रह गया और रह रहकर कसकता रहा
और ...किस्मत का खेल देखो .. आज फिर वही कहानी एक बार फिर मंच पर थी .कमलेश हैरान है चकित है भाग्य के इस विचित्र खेल पर .
पाँच महीने पहले विशाल की दर्दनाक मौत होगई . सारी खुशियाँ चकनाचूर होगईं . पूरी दुनिया
जैसे थम गई . ....
लेकिन किसी के जाने से दुनिया कहाँ थमती है .जाने वाले के लिये जिन्दगी बैठी मातम तो नही मनाती रहती न . विशाल चला गया .पर अमन तो सामने था . विवाह का महूर्त पहले से तय था . मानसिंह ने विवाह को कुछ समय के लिये टालना भी चाहा पर उसके बाद डेढ़ साल तक कोई शुभ महूर्त नही था . अमन का घर तो बसाना ही था .
अब घर में विवाह का माहौल है .सजे सँवरे अमन को चौक पूरे पटा पर बिठाने लाया जा रहा है .पर अमला के आँसू रोके नहीं रुक रहे . आँसू पौंछते पौंछते आँखों में खून सा उतर आया है .पलकें कच्चे घड़े सी तिरक उठीं हैं .
अब घर में विवाह का माहौल है .सजे सँवरे अमन को चौक पूरे पटा पर बिठाने लाया जा रहा है .पर अमला के आँसू रोके नहीं रुक रहे . आँसू पौंछते पौंछते आँखों में खून सा उतर आया है .पलकें कच्चे घड़े सी तिरक उठीं हैं .
तभी भागो बुआ चिल्ला उठी हैं --होश में आ अमला तू कोई बच्ची नहीं है बेटा पटा पर बैठा है ..सगुन असगुन का ख्याल तो कर ..
निरपेक्ष सी खड़ी कमलेश जो सूनी सी आँखों से सब कुछ देखती हुई अभी तक यही सोच रही थी कि भगवान ने ही जानबूझकर अम्मा को यह दिन दिखाया है कि अब समझो अम्मा जी ,बच्चे की मौत का गम क्या होता है .उसकी आँखें एकदम नीरस थीं और मन में विद्रूप सी हँसी .पर बुआ के मुँह से 'असगुन' शब्द सुनकर तड़फ उठी . कहीं लगा रह गया काँटा कसक उठा . उसे लगा जैसे अमला की जगह वह खुद बैठी है . असगुन की बात कहकर उसी को टोका जा रहा है .वह एकाएक विकल होकर आगे आई और पीछे से सास को बाँहों में भरकर बिलख उठी और कहने लगी —-“ बुआ जी ,अम्मा जी , यह न कहो . माँ के आँसू असगुन नहीं होते ....कभी नही होते .”
निरपेक्ष सी खड़ी कमलेश जो सूनी सी आँखों से सब कुछ देखती हुई अभी तक यही सोच रही थी कि भगवान ने ही जानबूझकर अम्मा को यह दिन दिखाया है कि अब समझो अम्मा जी ,बच्चे की मौत का गम क्या होता है .उसकी आँखें एकदम नीरस थीं और मन में विद्रूप सी हँसी .पर बुआ के मुँह से 'असगुन' शब्द सुनकर तड़फ उठी . कहीं लगा रह गया काँटा कसक उठा . उसे लगा जैसे अमला की जगह वह खुद बैठी है . असगुन की बात कहकर उसी को टोका जा रहा है .वह एकाएक विकल होकर आगे आई और पीछे से सास को बाँहों में भरकर बिलख उठी और कहने लगी —-“ बुआ जी ,अम्मा जी , यह न कहो . माँ के आँसू असगुन नहीं होते ....कभी नही होते .”
अमला ने थकी हारी आँसू भरी नजरों से कमलेश को देखा और उसके कन्धे से लगकर
फूट फूटकर रोने लगी.... खूब रह रह कर ..हुलक हुलककर...आँखों से अविरल जलधार बह रही
है . ढोलक बजाने वालियों के हाथ रुक गए हैं, , गीत थम गए हैं , बस आँखों से अविरल
जलधार बही जा रही हैं....