"अपनी खिडकी से" --यह वह संग्रह है जिसमें मेरी सत्रह बाल-कहानियाँ संकलित हैं ।जो बेशक अपनी खिडकी से नही बल्कि उनके ही आँगन में जाकर लिखी गईं हैं । आठवे-नौवे दशक में लिखी गईं इन कहानियों में अधिकांशतः चकमक, झरोखा, पाठकमंच ,बाल-भास्कर ,पलाश आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकीं हैं इसलिये कुछ नया तो नही है फिर भी पुस्तक के रूप में रचनाओं को देखना एक सन्तुष्टि तो देता ही है । इन कहानियों में से एक कहानी --हमने देखा मेला दो वर्ष पहले एस.सी.ई. आर.टी. उत्तरांचल की कक्षा 7 के हिन्दी (बुरांश) के पाठ्यक्रम में भी (फूफाजी शीर्षक (व्यंग्य) से )शामिल की जा चुकी है । यह संग्रह हाल ही में प्रगतिशील प्रकाशन दिल्ली से निकला है और उन सबको समर्पित है जिनकी प्रेरणा ने रचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । आशा है कि छोटे-बडे सभी पाठकों को ये कहानियाँ पसन्द आएंगी । बाकी सही समीक्षा तो सुधी समीक्षक ही कर सकेंगे । संग्रह की शीर्षक कहानी अपनी खिडकी से यहाँ प्रस्तुत है । एक दूसरी कहानी 'रद्दी सामान 'http://yehmerajahaan.blogspot. में पढ सकते हैं । आशा है आप इन कहानियों को अवश्य ही पढेंगे और अपनी राय भी देंगे।
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अपनी खिडकी से
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नीलू के कितने मजे हैं---वचन अपनी खिडकी में बैठा अक्सर नीलू के घर को देखते हुए सोचता रहता है ---इतना शानदार घर । घर में अकेला है । भाई-बहिन से लडाई--झगडे का कोई झंझट नही । कपडों,खिलौनों और अपने मम्मी-पापा के प्यार का अकेला ही दावेदार । कोई काम भी नही करना पडता शायद । नौकर जो हैं घर में । नीलू तो बस खेले ,और जब चाहे मन पसन्द चीजें बनवा कर खाए ..। नीलू की मम्मी भी कितनी अच्छी हैं । कैसे मुस्करा कर बोलतीं हैं सबसे । नीलू के लिये हर चीज तुरन्त हाजिर कर देतीं होंगी । वैसे ही जैसे टी.वी. के विज्ञापन में एक माँ मुस्कराते हुए दो मिनट में बच्चों को नाशता दे देती है ।...और नीलू के पापा भी कितने स्मार्ट हैं..। मैं जब उनसे नमस्ते करता हूँ तो कितने प्यार से जबाब देते हैं ।
नीलू के लिये सब कुछ कितना अच्छा है । तन्नू बता रही थी कि नीलू के घर में सबके लिये अलग-अलग कमरे हैं । नीलू का भी सोने का कमरा अलग है और पढने का अलग है । घर के अन्दर ही खूब बडा बगीचा है । उसमें कितने ही तरह के फूल और फल वाले पेड हैं । बगीचे में खूब सारी तितलियाँ और चिडियाँ होंगी । उसके दरवाजे पर कोई न कोई गाडी खडी रहती है । मेहमान आते होंगे । खूब चहल-पहल रहती होगी । नीलू भी खूब बन सँवर कर घूमने जाता होगा अपने मम्मी--पापा के साथ ।
उसे तो कहीं जाने का मौका ही नही मिलता----वचन नीलू के बारे में सोचकर अक्सर उदास होजाता है कल्पना करता है कि काश वह भी नीलू की तरह रह पाता । उसकी जिन्दगी में नीलू जैसी कोई सुविधा या नयापन नही है । न कोई मौज-मजा न ही घूमना-फिरना । रोज सब कुछ एक सा ही होता है । माँ का जल्दी जाग जाना । फिर सबको भी जगा कर काम में लगा देना । सबके काम बँटे हुए हैं । मुझे सबके बिस्तर तहा कर रखने, व सब्जी लाने का काम मिला है तो रंजन को पानी भरने व कपडे सुखाने डालने का काम करना होता है। गुडिया को धुले बर्तन अलमारी में जमाने होते हैं । कभी-कभी काम के लिये झगडा भी होता है । पढाई का बोझ अलग ।
हमें इतने काम क्यों करने पडते हैं ---पिताजी से कहो तो वे हँस कर कहते हैं --अरे भई, अपने काम को हम नही करेंगे तो कौन करेगा । झूठ ,नीलू के घर तो उनका सारा काम नौकर करता है ।
शाम को लौट कर भी पिताजी टोकते ही रहते हैं ---अरे वचन आओ बेटा बताओ आज तुमने क्या किया.. सवाल हल नही हुए..क्यों ,रंजन स्कूल नही गया..क्य पैर में चोट लग गई ..बताना ..अरे जरा सी चोट है । इसी से घबरा गए हमारे सहाब बहादुर..। हमारे पिताजी को हमारी मुश्किलों का अहसास ही नही है । नीलू के पापा तो ,तन्नू बता रही थी कि एक-दो छींक आने पर ही वे नीलू को डा के पास ले जाते हैं ...। वचन का मन है कि वह नीलू की तरह रहे । उसकी माँ भी नीलू की माँ की तरह खूब बन सँवर कर रहे । और पिताजी भी....
अरे वचन ,अकेला क्या कर रहा है ।---नीलू ने पुकारा तो वचन हैरान रह गया । एक-दूसरे कोदूर से देखने के अलावा उनकी आपस में कोई पहचान नही है । दोस्ती तो दूर की बात । फिर भी नीलू उसकी खिडकी के पास से इतने अपनेपन से पुकार रहा है ।
आ जा मेरे घर । खेलेंगे ।
मैं---वचन फिर हैरान हुआ पर मन ही मन बहुत खुश भी । मनचाही मुराद जो पूरी होगई थी ।
नीलू का घर उसके लिये एक सपनों की दुनिया जैसा था ।
तेरे मम्मी--पापा कहाँ हैं ---वचन पहले नीलू की मम्मी से मिलना चाहता था ।
मम्मी किसी सहेली के यहाँ गईं हैं । शाम तक लौटने वाली नही हैं । और पापा को भी ऑफिस से आने में अँधेरा होजाता है ।तब तक अपन खूब खेलेंगे ।--नीलू ने उल्लास के साथ कहा । और अपने कमरे में वचन को लेगया । वचन सम्मोहित सा नीलू की चीजें देखने लगा । उसके पास ढेर सारे रंगीन चित्रों वाली किताबें ,खिलौने साइकिल क्रिकेट का सामान ,शानदार कपडे कई जोडी जूते ...।
इतना सारा सामान---वचन चकित हुआ कहने लगा ।
अरे यह तो कुछ भी नही है---नीलू बोला---लेकिन यार मैं तो ऊब जाता हूँ । कितने कपडे पहनूँ । खैर छोड आ अपन बगीचे में खेलते हैं ।
बगीचे में वचन पेड--पौधों के नाम ,उनकी कटिंग ,सिंचाई व खाद के बारे में बताता रहा और नीलू चकित होता रहा ---
वाह, वचन तुझे यह सब कैसे पता ।
मेरे पिताजी बताते रहते हैं । वचन ने कुछ पुलक के साथ कहा । इसके बाद वे लुका छिपी खेलते रहे।
आज बहुत मजा आया सच । मैं जब भी अकेला होऊँगा तुझे बुला लिया करूँगा । आएगा न ।
मैं तो खुद यही चाहता था। पर सोचता था कि तू अपनी मम्मी के साथ कहीं गया होगा ।
मम्मी मुझे ले ही कहाँ जातीं हैं ।--नीलू कुछ उदास होकर बोला--या तो पापा के साथ या अपनी किसी सहेली के साथ ही जातीं हैं । मैं जाने की जिद करता हूँ तो कहतीं हैं बच्चों को जिद नही करनी चाहिये । खैर छोड इन बातों के अपन क्रिकेट खेलते हैं ।
नही साइकिल चलाएंगे । वचन को छोटी सी साइकिल बहुत लुभाती है ।
नही यार ,साइकिल तो मैं अकेला भी चला सकता हूँ । क्रिकेट के लिये कोई साथी जरूरी है न ।
नीलू, ए नीलू , नीलेश कहाँ हो ।कैसी आवाज आ रही है ।
अरे बाप रे मम्मी आगई ।----नीलू ने घबरा कर कहा । उसने दो-चार रन ही बनाए होंगे कि मम्मी की आवाज सुन कर बैट हाथ से छूट गया ।
पर वे तो शाम तक आने वालीं थीं न ।
ओय तू मम्मी से इतना क्यों घबरा रहा है । मैं भी उनसे मिल लूँगा ।---वचन ने उत्साहित होकर कहा ।
"अरे नीलू !" सुना नही मैं कबसे पुकार रही हूँ !"---नीलू की माँ ने कुछ तेज स्वर में कहा ।
आया मम्मी--नीलू कपडे ठीक करता हुआ बैट वही छोडकर भागा ।
"बगीचे में क्या कर रहे थे इस समय ?" माँ ने डाँटते हुए कहा---"दोपहर का समय खेलने का होता है या आराम करने का । उफ्..कितना पसीना बह रहा है !कपडों की क्या हालत बना रखी है । यही आदत अच्छी नही है तुम्हारी ..। जिस चीज के लिये मना करो उसी को करते हो ..। और कमरे को देखो एकदम कबाडखाना बना कर रख दिया है । इतनी सारी मँहगी-मँहगी चीजें किसलिये खरीदी हैं ! नीलू तुम बदतमीज होते जा रहे हो ...।"
नीलू चुपचाप सुन रहा था तभी वहाँ वचन के होने का ध्यान आया ।
"मम्मी ,यह वचन है । मेरा दोस्त है । बहुत अच्छा ।"
वचन ने हाथ जोडकर नमस्ते कहा तो नीलू की माँ हल्का सा मुस्कराई ।
"वचन बेटा अपने जूते एक तरफ रखो । देखो कमरे में कितनी धूल आगई है । और तुम लोग इतनी धूप में बगीचे में क्यों गए । कमरे में ही बैठ कर कुछ पढ लेते । नीलू ! चीज को जहाँ से उठाओ वहीं रखो समझे ?"
"जी मम्मी !"
मम्मी कमरे में चली गईं तो नीलू के चेहरे पर कुछ राहत सी लगी ।
"नीलू क्रिकेट छोडो ,मम्मी नाराज होगी । अब अपन साइकिल चला लें या फिर ..."
"अब नही यार ,मम्मी कुछ नही करने देंगी । उनके सामने तो बस एक जगह बैठे पढते रहो । अपनी मर्जी से कुछ मतकरो ।सफाई का बहुत ध्यान रहता है उन्हें । फर्श पर एक तिनका या चादर पर एक सिलवट भी मंजूर नही होती उन्हें ।"
"तो फिर तू हमारे घर आ जाया कर । वहाँ कोई नही रोकेगा । सामने वाले मैदान में खेला करेंगे ।"
"तब तो तुझे कुछ पता ही नही है वचन । घर से मैं जाहे जहाँ नही निकल सकता । कपडे खराब होजाएंगे । गंदा माहौल है ।लोग हमारे स्तर के नही हैं ..कई तर्क हैं उनके पास । उनकी मर्जी के बिना मैं कुछ नही कर सकता ।"
"और पापा ?"--वचन इस जानकारी से थोडा हैरान था ।
"पापा के लौटने का कोई भरोसा नही रहता ।"
"तुझसे बात नही होपाती ?"
"बात ??".. नीलू उपहास से हँसा --"यार वचन मुझे तो तू सही लगता है । तू अपनी मर्जी से कुछ तो कर सकता है । तेरे बहन-भाई भी हैं । सब मिल कर काम करते होंगे । बाजार में जाने की आजादी भी होगी । कितना मजा आता होगा !"
"आपस में खिंचाई भी खूब होती है । पिताजी की भी डाँट भी सुननी पडती है ।-"--वचन हँसा ।
"तो क्या हुआ । पास बिठा कर प्यार भी तो करते होंगे । तुम्हारी छोटी-छोटी बातें भी सुनते होंगे । मैं तो सूने घर में नौकर की हिदायतें सुन-सुन कर ऊब गया हूँ । कुछ काम भी नही है करने को । यार वचन मैं तेरी तरह रहना चाहता हूँ । चाहता हूँ कि खूब मैदान में दौडूँ । मिट्टी में बिगडने की परवाह न करूँ ।"
वचन हैरान हुआ सा सब सुन रहा था । उसे महसूस हो रहा था कि अब अपनी खिडकी से पहले की तरह नीलू का घर देखने की कतई जरूरत नही है ।/