tag:blogger.com,1999:blog-2294208973076847811.post39919201004744470..comments2024-01-29T20:53:48.352-08:00Comments on कथा-कहानी: उमस भरी सुबह और एक फोनकॉल गिरिजा कुलश्रेष्ठhttp://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-2294208973076847811.post-53885679206575705902015-09-07T12:30:13.262-07:002015-09-07T12:30:13.262-07:00एक शहरी उत्तर भारतीय घर का इतना सजीव चित्रण किया ह...एक शहरी उत्तर भारतीय घर का इतना सजीव चित्रण किया है कि क्या कहूँ और<br /> ( कौन हो सकता है जो फोन करता है पर बोलता नहीं जरूर कोई न कोई चक्कर जरूर होगा, हाँ जरूर कोई भूत होगा सुधाकर बाबू हँस कर कह देते हैं क्यूँ कोई चुढैल नहीं हो सकती)<br />यहाँ तो मैं अपने बिस्तर पर दीवार के सहारे पढ रहा था हँसते २ लुढक गया<br />कमाल रचा है आपने<br />और मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित कर गया शेरलाक होल्मस का उदाहरण बेहद अच्छी रचना विकास कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15504866920850217760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2294208973076847811.post-83558828713064864322015-06-22T23:15:49.945-07:002015-06-22T23:15:49.945-07:00अच्छी कहानी। बिलकुल स्वाभाविक पात्र रचना । अच्छी कहानी। बिलकुल स्वाभाविक पात्र रचना । स्वातिhttps://www.blogger.com/profile/06459978590118769827noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2294208973076847811.post-65488533910099562772015-04-11T02:18:40.278-07:002015-04-11T02:18:40.278-07:00बहुत ही ध्यान से पढ़ रही थी ,बहुत ही अच्छा लिखा है...बहुत ही ध्यान से पढ़ रही थी ,बहुत ही अच्छा लिखा है ,आप आयी इसके लिये धन्यवाद ज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2294208973076847811.post-36072465511869027132015-04-11T02:17:49.382-07:002015-04-11T02:17:49.382-07:00बहुत ही ध्यान से पढ़ रही थी ,बहुत ही अच्छा लिखा है...बहुत ही ध्यान से पढ़ रही थी ,बहुत ही अच्छा लिखा है ,आप आयी इसके लिये धन्यवाद ज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2294208973076847811.post-46320453645985931962015-04-07T10:10:53.827-07:002015-04-07T10:10:53.827-07:00घर के लोगों की तीमारदारी करते करते अमला अपने स्वयम...घर के लोगों की तीमारदारी करते करते अमला अपने स्वयम् को भूले बैठी थी। अपना सारा वज़ूद पति और बच्चों में खपाने के बावज़ूद आपको वो सम्मान नहीं मिलता क्यूँकि आप अपना निजी व्यक्तित्व विकसित नहीं करते और फिर दूसरों को अपने में रमने का विचार आप में एक कुंठा का जन्म ले लेता है।<br />Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.com